सुधा यादव , नई दिल्ली
इमरोज नहीं रहे।97 साल की उम्र में इमरोज दुनिया को अलविदा कह गए। वही इमरोज, जिनसे मौजूदा पीढ़ी शायद उतनी वाबस्ता न हो, लेकिन जब-जब नज्म-कविताएं लिखने वालों की दुनिया में रूहानी रिश्तों का जिक्र आया, इमरोज का नाम शिद्दत से याद किया जाता रहा।यूं तो वे चित्रकार थे। बाद में कविताएं-नज्में भी कागजों पर उतारीं, लेकिन मशहूर कवयित्री अमृता प्रीतम से हमसाए की तरह रही उनकी दोस्ती ज्यादा सुर्खियों में रही।
इमरोज, उर्दू जुबान में सांसारिक सुख को कहा जाता है। समाज शास्त्र में इमरोज का अर्थ अगर पुरुष और स्त्री के संबंध को लेकर देखे तो सीधी सरल परिभाषा है -सुखद वैवाहिक जीवन मगर इस दुनियां में एक इमरोज ऐसा भी था जिसे अपने नाम को परिभाषित करने के लिए सिर्फ एक शब्द ही पर्याप्त था - अमृता प्रीतम।
इमरोज़ का निधन सिर्फ एक प्रतिभाशाली कलाकार का नुकसान नहीं है - ऐसा लगता है जैसे हमने अमृता को फिर से खो दिया है।अमृता, एक साहसी लेखिका, जिनकी कामुकता पर अडिग दृष्टि और मुक्ति और आत्म-प्राप्ति के लिए निरंतर खोज, जब उन्होंने लिखना शुरू किया था, लगभग अनसुना था। उसकी दुनिया में, एक महिला को अपनी इच्छाओं को सम्मान के साथ जीने के लिए बनाया गया था। यह एक ऐसी दुनिया थी जिसमें न केवल उसके पात्र शामिल थे - बल्कि वह भी शामिल थी।
जिस तरह अमृता अपने समय से कहीं आगे की कवयित्री मानी गईं, वैसे ही उनका और इमरोज का रिश्ता उनके दौर से कहीं आगे का रहा और हमेशा बाइज्जत याद किया जाता रहा। दोनों ने कभी शादी नहीं की, लेकिन इमरोज कई दशक अमृता प्रीतम के साथ रहे। अमृता उम्र में उनसे कोई सात साल बड़ी थीं, लेकिन दोनों का रिश्ता उम्र के फासलों से भी बड़ा था। एक बार इमरोज ने शायद अमृता के लिए ही लिखा था, ”जिंदगी में मनचाहे रिश्ते अपने आप हमउम्र हो जाते हैं..।” 2005 में कवयित्री के गुजर जाने के कुछ बरस बाद उन्होंने ‘अमृता के लिए नज्म जारी है’ नाम से किताब भी लिखी। अमृता ने अपनी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ में साहिर लुधियानवी के अलावा अपने और इमरोज के रिश्तों का जिक्र किया है।
इमरोज, अमृता प्रीतम के जीवन में आने वाले तीसरे और अंतिम पुरुष थे।छः साल उम्र में अमृता की शादी प्रीतम सिंह से हुई थी लेकिन रूमानी अमृता के जीवन में क्रांतिकारी गीतकार साहिर लुधियानवी साहित्यिक साथी के रूप में आ चुके थे। इस रिश्ते के चलते अमृता का प्रीतम से साथ छूटा लेकिन साहिर भी उनके नहीं हुए। अमृता के जीवन में तीसरे पुरुष इमरोज थे जो रुचि के मायने से पेंटर और कवि थे।
एक लेखक ने एक बार इमरोज़ से पूछा था कि क्या उन्हें कभी साहिर से ईर्ष्या हुई थी। "बिल्कुल नहीं," उन्होंने कहा। “जो व्यक्ति अमृता से प्यार करता है वह मुझे भी प्रिय है। इसीलिए तुम्हें मेरे कमरे में साहिर की तस्वीर दिखेगी।”
मैं जब खामोश होता हूं
और ख्याल भी खामोश होते हैं
तो एक हल्की-हल्की सरगोशी होती है
उसके एहसास की
उसके शेरों की...
इमरोज़
पठानकोट से हुई थी प्रेम कहानी की शुरुआत
दोनों की प्रेम कहानी की शुरुआत पंजाब के पठानकोट से हुई थी, जो पंजाब की गलियों से निकलकर दिल्ली-मुंबई से होते हुए देश-विदेश तक पहुंची। अमृता के प्रति इमरोज के प्रेम को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया। खराब स्वास्थ्य में भी इमरोज ने अमृता की यादों को संजोया, उनके रेखाचित्रों और तस्वीरों से घिरे रहे और कविता व कला के माध्यम से उनकी प्रेम कहानी को अमर बनाया। एक कलाकार से कवि बनने के बाद इमरोज के शब्द अमृता के प्रति उनके अटूट स्नेह को दर्शाते हैं। इमरोज ने लिखा था- तेरे साथ जिए वो सब खूबसूरत दिन रात, अब अपने आप मेरी कविताएं बनते जा रहे हैं...। अमृता के अस्वस्थ रहने के बाद इमरोज ने कविताएं लिखना शुरू किया और उनकी मृत्यु के बाद भी उन्होंने उन्हें समर्पित कई कविताएं लिखीं। उनके चार काव्य संग्रह प्रकाशित हुए, जिनमें सभी कविताएं अमृता को समर्पित थीं। इनमें 'जश्न जारी है', 'मनचाहा ही रिश्ता' और 'रंग तेरे मेरे' शामिल हैं
मिलना था तो दोपहर में मिलते… अमृता ने अपने जीते जी इमरोज से कहा था, “अजनबी तुम मुझे जिंदगी की शाम में क्यों मिले, मिलना था तो दोपहर में मिलते।” समाज के रीति-रिवाजों के मुताबिक दोनों ने कभी शादी नहीं की। इमरोज अमृता को ही अपना ‘समाज’ बताते थे। कई बार स्कूटर पर पीछे बैठकर अमृता इमरोज की पीठ पर कुछ न कुछ उकेरती रहती थीं। इमरोज कहते थे कि कई बार मेरी पीठ पर अमृता ने साहिर का नाम लिखा, लेकिन क्या फर्क पड़ता है। वो साहिर को चाहती हैं तो चाहें, मैं उन्हें…
अमृता को स्मृतियों में रखा जिंदा
2005 में अमृता के निधन के बावजूद इमरोज ने उन्हें अपनी स्मृतियों में जीवित रखा। इमरोज कहते थे 'वो यहीं है, घर पर ही है, कहीं नहीं गई। यहीं, इन दीवारों के भीतर, वह रहती है, कभी नहीं जाती।' इन भावनाओं को इमरोज ने 97 वर्ष की उम्र तक बनाए रखा। अपनी एक कविता में इमरोज कहते हैं- जीने लगो, तो करना फूल जिंदगी के हवाले... जाने लगो, तो करना बीज धरती के हवाले...। अपने निधन से पहले इमरोज प्यार का ऐसा बीज धरती के हवाले कर गए हैं, जो आने वाले कई वर्षों तक फूल बनकर महकता रहेगा।
'उसने जिस्म छोड़ा, साथ नहीं'
इमरोज ने एक इंटरव्यू में बताया था कि अमृता की उंगलियां हमेशा कुछ न कुछ लिखती रहती थीं. फिर चाहे उनके हाथ में कलम हो या न हो. उन्होंने कई बार मेरी पीठ पर उंगलियों से 'साहिर' का नाम लिख दिया. लेकिन क्या फर्क पड़ता है. वो उन्हें चाहती हैं तो चाहती हैं. मैं भी उन्हें चाहता हूं. अमृता की मौत के बाद इमरोज कवि बन गए. उन्होंने अमृता के जाने के बाद लिखा, 'उसने जिस्म छोड़ा है, साथ नहीं.'
अमृता प्रीतम हिंदी और पंजाबी भाषा की एक ऐसी सशक्त हस्ताक्षर है जिनके लेखन का लोहा देश दुनियां मानती है। उनका बेबाक जीवन भी हमे बहुत कुछ समझाता है। तब के जमाने में जब लड़के लड़कियों के स्कूल अलग हुआ करते थे। लड़कियों के घर से अकेले बाहर जाने पर बंदिशे हुआ करती थी। आपस में बात करना तो तथाकथित चार लोगो के लिए किसी के घर की इज्जत उछालने के लिए पर्याप्त हुआ करता था तब के जमाने में अमृता प्रीतम ने 40 साल इमरोज के साथ एक छत के दो अलग अलग कमरों में बिताए बिना किसी सामाजिक संबंध के डोर में बंधे।आजकल के दौर में ये रिश्ता लीव इन रिलेशनशिप कहलाता है।
अमृता प्रीतम और इमरोज जैसा होना आसान नहीं होता है।आज जब हम आधुनिक होने का स्वांग रचते है तब भी पुरुष और स्त्री के संबंध में हमारे विचार खोखले होते है। अनजान पुरुष और स्त्री के किसी भी प्रकार के संबंध बनाने की हमारे पास आजादी होती है। इससे परे पुरुष और स्त्री के बीच एक रिश्ता मित्रवत् होता है,दैहिक आकर्षण से जुदा। इस रिश्ते को हर कोई समझ नहीं सकता है।समझना चाहे तो एक बार इमरोज की जिंदगी को जरूर झांकना चाहिए जिसके लिए अमृता प्रीतम ने लिखा है कि अजनबी जिंदगी के शाम में क्यों मिले दोपहर में क्यों नहीं!
मैं तेनु फिर मिलंगी
किथे? किस तरह? पता नहीं
शायद तेरे तखैउल दी चीनाग बान के
तेरे कैनवास ते उतरंगी
या कोरे तेरे कैनवास दे उत्ते
इक्क रहस्मयी लकीर बान के
खामोश तेनु तकदी रहेगा
मैं तेनु फेर मिलांगी
मैं जब खामोश होता हूं
... अमृता प्रीतम
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