जलवायु परिवर्तन और भुखमरी के दौर में मोटे अनाज से संभावनाएं 

बचपन में हम दादी की उंगली पकड़ खेतों की ओर निकल जाते थे।चारों ओर लंबी लंबी घास जैसी फसल लगभग सभी खेतों में दिखाई देती तो हम उनसे पूछते कि यह क्या बोया गया है, दादी बड़े प्यार से बोलती कि ये साँवा है, हमारे जमाने में गाँव के लोग चावल की जगह इसे ही खाते थे।हम उनसे बोलते की हमें भी खाना है ,तो दादी कभी- कभी  साँवा की खीर बना के खिलातीं , हमें वो खीर आज भी याद है, वह हमेशा आम की चटनी और बाजरे की रोटी खाया करती थी। कभी कभी दिन में हम दादी के साथ जानवरों को चराने जाते तो वह साथ में चना और जौ का सत्तू अँचरा में बाँध लेती फिर उसे पत्ते पर गूँथ कर खुद भी खाती और हमें भी खिलाती। उस दौर में हर लघु और सीमांत किसान की जिंदगी से जुड़ा था "मोटा अनाज”

संयुक्त राष्ट्र ने भारत की पहल पर 2023 को मोटे अनाज का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया है।वहीं भारत,वर्ष 2018 को मोटे अनाज का राष्ट्रीय वर्ष मना चुका है।मोटा अनाज पूरे विश्व में अभी खाद्य सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।मौजूदा वक्त में पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली खाद्य असुरक्षा की संभावना को लेकर बहुत चिंतित है।ज़ीरो हंगर और क्लाइमेट एक्शन को संयुक्त राष्ट्र ने अपने सतत विकास लक्ष्य के 17 लक्ष्यों में महत्वपूर्ण 2 लक्ष्य बनाया है।

हाल ही में प्रकाशित 'वैश्विक भुखमरी सूचकांक' में भारत की रैंक 125 देशों में 111 रही, जो कि बहुत ही चिंताजनक है।हंगर इंडेक्स पर आधारित रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘भारत में बच्चों के कुपोषण की दर दुनिया में सबसे अधिक 18.7 फीसदी है, जो तीव्र कुपोषण को दर्शाती है।भारत में भुखमरी की तिहरी समस्या है- कुपोषण, मोटापा और पोषक तत्वों की कमी।

भारत की अधिकांश आबादी स्टेपल ग्रेन यानी कि गेहूँ - चावल पर निर्भर है और किसान भी इन्हीं माँग को देखते हुए बड़े स्तर पर गेँहू और चावल का उत्पादन कर रहा है।पंजाब जलवायु के प्रतिकूल चावल का उत्पादन कर रहा है जिससे जल संसाधन का अत्यधिक दोहन हो रहा और मिट्टी की गुणवत्ता घटती जा रही है।

स्टेपल ग्रेन भारत को अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर बना रहा लेकिन खाद्य में न्यूट्रिएंट की कमी को पूरा करने में नाकाम रहा है।मोटे अनाज के पास हंगर की तीनों समस्याओं कुपोषण,मोटापा और पोषक तत्वों की कमीं से लड़ने की क्षमता है। भारत पूरे विश्व के मोटा अनाज उत्पादन का 12 प्रतिशत उत्पादन करता है, जो कि भारत में माँग के अनुसार कम है।

संसाधनों के अनियंत्रित दोहन से मिट्टी अपनी गुणवत्ता खोती जा रही है, जलवायु परिवर्तन से तापमान बढ़ता जा रहा और वर्षा का पैटर्न भी बदलता जा रहा है। इस मरुस्थलीकरण के बढ़ते प्रभाव से खाद्य असुरक्षा का संकट मंडरा है। ऐसे में मोटा मिट्टी की गुणवत्ता को बचाने में कारगर सिद्ध होगी क्योंकि मोटे अनाज की खेती मिट्टी की गुणवत्ता को बनाये रखती है और इसके उत्पादन में जल संसाधन और उर्वरक का नियंत्रित उपयोग होता है।

अभी भारत दुनिया का 12 प्रतिशत मोटे अनाज का उत्पादन करता है और आज पूरी दुनिया में इसकी की माँग बढ़ती जा रही है। ऐसे में यदि भारत में मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाता है तो भारत में इसका निर्यात बढ़ेगा जो भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ाएगा।

कृषि संगणना के अनुसार भारत का 90 से 92 प्रतिशत किसान लघु और सीमांत है, जिसकी जोत का आकार शून्य से एक हेक्टेयर तक है। जो गेहूँ और चावल का उत्पादन कर न्यूनतम समर्थन मूल्य का फायदा भी नहीं हासिल कर पा रहा है। मोटा अनाज इन किसानों के लिए एक संभावना है कि वे मोटे अनाज को उगाकर छोटी जोत में भी अच्छी आमदनी कमा सकता है साथ साथ कुपोषण और भोजन में पोषक तत्वों को कमी से भी बच सकता है।

साल 2023 के बजट में केंद्र सरकार श्री अन्न योजना लाई है जिसका उद्देश्य है किसानों की आय बढ़ाना, सतत कृषि की तरफ कदम, खाद्य सुरक्षा और निर्यात को बढ़ावा देना।

फोटो ; jagaran

जागरण अशोक दलवई के नेतृत्व में किसानों को आय को दुगुना करने के लिए बनी समिति कहती है कि भारत की कृषि आपूर्ति आधारित है अर्थात किसान जो उत्पादित करता है उसी की आपूर्ति ही मार्केट के लिए माँग बन जाती है। दलवई समिति कहती है कि भारत में इस कृषि को आमदनी परक बनाने के लिए इसे माँग आधारित बनाया जाए जिसका अर्थ है कि माँग अगर मोटे अनाज की है तो किसान अपने खेतों में इसके के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित हों।जो उनके आमदनी में बढ़ोतरी भी करेगा।दलवई के अनुसार,कृषि के मौजूदा पैटर्न “फॉर्म टू फोर्क से बदल कर फोर्क टू फॉर्म में बदल दिया जाए”।

मोटे अनाज का उत्पादन आज की जरूरत है।इसमें किसानों की आय दुगुना करने की क्षमता है, इसका  उत्पादन जलवायु परिवर्तन से लड़कर सतत कृषि का मॉडल है।साथ ही मोटे अनाज में  तिहरी भुखमरी से लड़ने की पूरी क्षमता है जो खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।भारत सरकार इसे लेकर आशावान है। इस आशा को धरातल पर लाने के लिए केंद्र सरकार को योजना के साथ साथ किसानों में इसके प्रति जागरूकता भी पैदा करना महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।


सुधा यादव ( हिन्दी पत्रकारिता ) 

आईआईएमसी ( नई दिल्ली )

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SUDHA

Journalism Student, Part time Artist, Content creater